हर महीने आपकी सैलरी से टैक्स कटता रहे, लेकिन साल के अंत में इनकम टैक्स विभाग आपको नोटिस भेजकर कहे कि आपका टैक्स जमा ही नहीं हुआ है, तो यह किसी भी नौकरीपेशा व्यक्ति के लिए किसी सदमे से कम नहीं होगा. हाल ही में, कोलकाता में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जहां इनकम टैक्स अपीलीय ट्रिब्यूनल (ITAT Kolkata) ने एक परेशान कर्मचारी को बड़ी राहत देते हुए एक ऐतिहासिक नजीर पेश की है.
कंपनी की गलती, कर्मचारी को सजा क्यों?
यह पूरा मामला एक एड-टेक कंपनी में कार्यरत कर्मचारी से जुड़ा है. कंपनी ने अपने कर्मचारी की सैलरी से नियमित रूप से टीडीएस (TDS) काटा, जिसकी कुल राशि लगभग ₹14.88 लाख थी. कंपनी की जिम्मेदारी थी कि वह इस पैसे को केंद्र सरकार के खाते में जमा करे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.
जब कर्मचारी ने अपना इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) भरा और कटे हुए ₹14 लाख के टैक्स क्रेडिट का दावा किया, तो सिस्टम ने इसे खारिज कर दिया. इतना ही नहीं, विभाग ने कर्मचारी को टैक्स डिमांड का नोटिस भी थमा दिया. विभाग का तर्क था कि चूंकि पैसा सरकारी खजाने में नहीं आया, इसलिए इसका क्रेडिट नहीं दिया जा सकता.
'सेक्शन 205' का कानूनी कवच
कर्मचारी ने हार नहीं मानी और मामला ITAT कोलकाता पहुंचा. कर्मचारी के प्रतिनिधियों, एडवोकेट एस.के. तुलसीराम और एफसीए आभा अग्रवाल ने कोर्ट में मजबूती से पक्ष रखा.
उन्होंने इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 205 का हवाला दिया, जो यह स्पष्ट करता है कि यदि किसी व्यक्ति की आय से टीडीएस काट लिया गया है, तो उसे दोबारा वही टैक्स भरने के लिए नहीं कहा जा सकता. यह सेक्शन ही कर्मचारी के लिए कानूनी कवच बन गया.
दलील में CBDT (केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड) के 2015 और 2016 के निर्देशों का भी जिक्र किया गया, जिसमें साफ कहा गया है कि टैक्स काटने वाले (Deductor) की गलती के कारण करदाता को परेशान नहीं किया जाना चाहिए. इसके अलावा, मुंबई ITAT और गुवाहाटी हाई कोर्ट के पुराने फैसलों का भी हवाला दिया गया, जहां ऐसे ही मामलों में करदाताओं के हक में फैसला सुनाया गया था.
ट्रिब्यूनल ने अधिकारियों को लगाई फटकार
ITAT कोलकाता ने मामले की सुनवाई करते हुए निचली अथॉरिटी के रवैये पर नाराजगी जताई. ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि न्यायिक अनुशासन का पालन करना अनिवार्य है. जब उच्च अदालतें या ट्रिब्यूनल कोई फैसला सुनाते हैं, तो अधीनस्थ अधिकारियों को उसका पालन करना चाहिए.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इनकम टैक्स विभाग के पास सेक्शन 201 के तहत यह पूरा अधिकार है कि वह डिफॉल्ट करने वाली कंपनी (नियोक्ता) से टैक्स और जुर्माने की वसूली करे. लेकिन, अपनी वसूली की नाकामी का बोझ उस कर्मचारी पर नहीं डाला जा सकता, जिसकी सैलरी से पहले ही पैसा काटा जा चुका है.
नौकरीपेशा वर्ग के लिए बड़ी राहत
ट्रिब्यूनल ने असेसिंग ऑफिसर को निर्देश दिया कि कर्मचारी को TDS का पूरा क्रेडिट दिया जाए और भेजे गए डिमांड नोटिस को तुरंत रद्द किया जाए. ट्रिब्यूनल ने माना कि जैसे ही सैलरी से टीडीएस कटता है, कानूनन यह मान लिया जाता है कि कर्मचारी ने अपना टैक्स चुका दिया है. अब यह सरकार और कंपनी के बीच का मामला है कि वह पैसा सरकारी खाते में कैसे पहुंचेगा. यह फैसला लाखों वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत है.